Alfred Nobel Biography In Hindi | अल्फ्रेड नोबेल

परिचय

क्या आप 350 से ज्यादा पेटेंट वाले इन्वेंटर के बारे में जानना चाहते हैं ? क्या आप डायनामाइट और अनगिनत एक्सप्लोसिव्स ( explosives ) के इन्वेंशन के पीछे जो हैं उनके बारे में जानना चाहेंगे ! अगर हाँ , तो यह समरी इसकी शुरुआत करने के लिए बिल्कुल परफेक्ट है । यह समरी आपको एल्फ्रेड नोबेल के जीवन के बारे में बताएगी ।

Alfred Nobel Biography In Hindi | अल्फ्रेड नोबेल
Alfred Nobel Biography In Hindi | अल्फ्रेड नोबेल Nobel Biography In Hindi | अल्फ्रेड नोबेल

यह उनके शुरुआती जीवन , उनके इन्वेंशन , उनके निजी जीवन ( private life ) और नोबेल prizes के बारे में बताएगी जिससे उन्हें सम्मानित किया गया था । अगर आप history पढ़ना पसंद करते हैं या इंजीनियरिंग और इन्वेंशन में दिलचस्पी रखते हैं , तो आपको ये यक़ीनन पढ़ना चाहिए । तो आइए समाज के लिए नोबेल के योगदान और अब तक दिए गए सबसे इम्पोर्टेन्ट prizes में से एक की शुरुआत कैसे हुई उस बारे में जानते हैं !

शुरुआती जीवन:

यह चैप्टर एल्फ्रेड नोबेल के शुरुआती जीवन के बारे में बताती है । इसमें हम जानेंगे कि कैसे एल्फ्रेड की दिलचस्पी टेक्नोलॉजी और इन्वेंशन में हुई | हम उन कारणों का भी पता लगाएंगे जिन्होंने बचपन में इंजीनियरिंग और केमिस्ट्री के प्रति उनकी दिलचस्पी जगाई को , इस चैप्टर में उन पर उनके परिवार और साथियों के इन्फ्लुएंस के बारे में भी बताया गया है ।

कहानी :

एल्फ्रेड नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर 1833 को हुआ था । उनके पिता इमैनुएल नोबेल ने 1827 में कैरोलिना एंड्रीट अहलसेल से शादी की । उनके आठ बच्चे थे , लेकिन उनमें से केवल चार ही बचे । उनमें से एक थे एल्फ्रेड नोबेल । उनका परिवार 17th सेंचुरी के टेक्निकल जीनियस ओलोफ रुडबेक का वंश है । एक जवान लड़के के रूप में , एल्फ्रेड को इंजीनियरिंग में ख़ासकर एक्सप्लोसिव्स ( explosives ) में इंटरेस्ट था । अपने पिता की तरह एल्फ्रेड को भी टेक्निकल में बहुत दिलचस्पी थी । उनके पिता ने उन्हें इंजीनियरिंग के कुछ fundamental principles सिखाए जिससे उनमें और ज्यादा दिलचस्पी पैदा हुई । इसी तरह , इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी का प्रभाव , एल्फ्रेड पर बचपन से ही था । वो अपनी माँ के बेहद करीब थे । इमैनुएल नोबेल स्वीडन से फिनलैंड चले गए । स्वीडन में एल्फ्रेड की मां ने परिवार की देखभाल की । हालाँकि वह एक अमीर परिवार से थी , लेकिन एल्फ्रेड की माँ ने एक किराने ( grocery ) की दुकान शुरू की । किराने की दुकान से होने वाली इनकम ने परिवार को चलाने में मदद की । इमैनुएल 1837 में सेंट पीटर्सबर्ग चले गए । उनके पिछले बिज़नेस fail हो गए थे ,लेकिन इमैनुएल russia में सक्सेसफुल हुए ।

veneer lathe का इन्वेंशन करने के बाद , उनका परिवार 1842 में Russia में उनके साथ रहने लगा । क्योंकि परिवार अब फाइनेंसियल रूप से स्टेबल था , इमैनुएल ने अपने बेटे एल्फ्रेड को private टीचर के पास पढ़ने भेजा । उनके चारों बेटों ने अच्छी एजुकेशन ली । एल्फ्रेड स्कूल गए और केमिस्ट्री और अलग – अलग भाषाओं में सबसे अच्छे नंबर से पास हुए | वह इंग्लिश , जर्मन , russian , स्वीडिश और फ्रेंच में बहुत अच्छे थे । उन्होंने ” ज़िनिन रिएक्शन ” के लिए पहचाने जाने वाले फेमस Russian केमिस्ट निकोलाई ज़िनिन के साथ भी पढ़ाई की | इस तरह , एल्फ्रेड के साथियों ने उन्हें इन्फ्लुएंस किया |

एल्फ्रेड ने 1850 में Russia छोड़ने और केमिस्ट्री की पढ़ाई करने के लिए पेरिस जाने का फैसला किया । उन्हें कविता में भी दिलचस्पी थी , लेकिन उनके पिता इससे खुश नहीं थे । उन्होंने अपने बेटे को केमिकल इंजीनियर बनने के लिए विदेश भेजने का फैसला किया । पेरिस में , एल्फ्रेड की मुलाकात एस्केनियो सोबरेरो से हुई जो एक फेमस Italian केमिस्ट थे जिन्होंने नाइट्रोग्लिसरीन ( nitroglycerin ) का इन्वेंशन किया था । सोबरेरो ने नाइट्रोग्लिसरीन का इस्तेमाल करने की सिफारिश नहीं की क्योंकि यह गर्मी या pressure के कारण फट जाता था , और इसका बेहेवियर भी unpredictable था । लेकिन एल्फ्रेड ने नाइट्रोग्लिसरीन का इस्तेमाल करने और इसे काबू में करने का एक तरीका खोजा ।

एल्फ्रेड एक क्यूरियस इंसान थे जो किसी भी प्रॉब्लम का हल खोजना चाहते थे । explosives में उनकी दिलचस्पी ने उन्हें नाइट्रोग्लिसरीन को मार्केट में लाने में मदद की | यह एक अच्छा आईडिया था क्योंकि नाइट्रोग्लिसरीन बारूद से कहीं ज्यादा शक्तिशाली था । बाद में , एल्फ्रेड नोबेल United States गए और इन्वेंटर जॉन एरिक्सन के नीचे काम करने लगे । एल्फ्रेड 1852 में Russia लौट आए और अपने पिता के साथ अपने फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया । इमैनुएल की फैक्ट्री ने 1853 के क्रीमियन जंग के लिए मिलिट्री इक्विपमेंट को बनाया । जंग के बाद , कंपनी दिवालिया हो गई क्योंकि वो उतने अच्छे स्टीमबोट मशीनरी नहीं बना पा रही थी जितनी अच्छी मिलिट्री इक्विपमेंट बनाती थी । इस तरह , एल्फ्रेड के शुरूआती सालों में उतार – चढ़ाव बना रहा ।

डायनामाइट का इन्वेंशन:-

उनके बिज़नेस के चरमरा जाने के बाद , एल्फ्रेड और उनके माता – पिता स्वीडन लौट आए । एल्फ्रेड के भाई लुडविग और रॉबर्ट Russia में ही रह गए ताकि उनके पारिवारिक बिज़नेस में जो कुछ बचा है , उसकी देखभाल की जा सके । स्वीडन में , एल्फ्रेड ने अपने पिता की प्रॉपर्टी में अपनी छोटी laboratory में explosive पर काम करना शुरू किया । उस दौरान mines में इस्तेमाल होने वाला इकलौता explosive गनपाउडर था । नाइट्रोग्लिसरीन एक बहुत शक्तिशाली explosive था , लेकिन इसका इस्तेमाल करना सेफ़ नहीं था ।

हालांकि , एल्फ्रेड ने एक factory की शुरुआत की जो नाइट्रोग्लिसरीन बनाता था । उन्होंने explosive को सेफ़ बनाने के तरीके खोजने के लिए भी research करना शुरू किया । 1863 में एल्फ्रेड द्वारा एक डेटोनेटर बनाया गया था । यह एक लकड़ी का प्लग था जिसे नाइट्रोग्लिसरीन charge में डाला गया था जिसे एक metal के कंटेनर में डाल दिया गया था । उन्होंने 1865 में एक बेहतर डेटोनेटर भी बनाया , जिसे ब्लास्टिंग कैप कहा जाता था । यह एक metal cap थी जिसमें Mercury fulminate था , और medium गर्मी या झटका इसे explode कर सकता था । ब्लास्टिंग कैप ने लोगों के लिए नाइट्रोग्लिसरीन का इस्तेमाल शुरू करना आसान कर दिया । लेकिन नाइट्रोग्लिसरीन को इधर उधर ले जाना और स्टोर करना मुश्किल था । लेकिन ये liquid इतना खतरनाक था कि उसकी वजह से एल्फ्रेड के फैक्ट्री में ब्लास्ट हुआ जिससे उनके छोटे भाई एमिल की मौत हो गई । हादसे में चार और लोगों की भी मौत हो गई थी ।

दुख भरी मौतों के बावजूद , एल्फ्रेड ने कई नाइट्रोग्लिसरीन फैक्ट्री बनाए और अपनी bottle कैप का इस्तेमाल किया । उन्होंने विंटरविकेन में नाइट्रोग्लिसरीन एक्टीबोलागेट एबी ( Nitroglycerin AktiebolagetAB ) नाम की कंपनी की शुरुआत की । फैक्ट्री में हुए ब्लास्ट के बाद वह सुनसान इलाके में काम करना चाहते थे । लेकिन अभी भी नाइट्रोग्लिसरीन की वजह से एक्सीडेंट हो रहे थे । 1867 में , एल्फ्रेड नोबेल ने डायनामाइट का इन्वेंशन किया । उसे इत्तेफ़ाक से पता चला कि केज़लगुहर नाइट्रोग्लिसरीन को सोख लेता हैं ताकि वह सूख जाए । केज़ल्गुहर छेददार मिट्टी होती है जिसमें सिलिका होता है और जो mixture बनकर तैयार हुआ , वह इस्तेमाल करने के लिए सुरक्षित था और इससे कोई ब्लास्ट नहीं हुआ । उन्होंने सीमेंट , कोयला और sawdust भी आजमाया , लेकिन ये mixture काम नहीं आए ।

एल्फ्रेड ने अपने इन्वेंशन का नाम ” डायनामाइट ” रखा , क्योंकि यह शब्द ग्रीक शब्द ” डायनेमिस ” से आया है , जिसका मतलब है ” पॉवर । ” वह सब से पहले इसे ” नोबेल्स ब्लास्टिंग पाउडर ” कहना चाहते थे । यह बहुत काम में आया , और नोबेल को उनके इन्वेंशन के लिए 1867 में ग्रेट ब्रिटेन और United States ने पेटेंट दे दिया । अब , डायनामाइट का इस्तेमाल खुदाई , सुरंगों को नष्ट करने , रेलवे और सड़कों को बनाने के लिए किया जाने लगा | यह आमतौर पर कार्डबोर्ड सिलेंडर के रूप में बेचा जाता है । अपने इन्वेंशन के कारण एल्फ्रेड नोबेल दुनिया भर में मशहूर होने लगे|

आज , साउथ अफ्रीका और अमेरिका डायनामाइट को बनाने वाले सबसे बड़े देश हैं । डायनामाइट के इस्तेमाल के लिए दुनिया भर में लाइसेंस की जरुरत होती है ।

डायनामाइट का evolution:-

पूरे यूरोप में , एल्फ्रेड ने डायनामाइट को बनाने वाले कारखानों का एक नेटवर्क बनाया । उन्होंने अपने सामान को भी बड़े तौर पर बेचा । लेकिन एल्फ्रेड डायनामाइट के बेहतर रूप की तलाश में थे । वह एक perfectionist थे और और चाहते थे की उनका सामान सबसे बेहतर हो जिसे safe explosive के रूप में इस्तेमाल किया जा सके । 1875 में , ” ब्लास्टिंग जिलेटिन ” नाम का डायनामाइट , जो ज्यादा मजबूत था , का इन्वेंशन किया गया । उन्होंने 1876 में ब्लास्टिंग जिलेटिन का पेटेंट लिया ।

एक बार फ़िर , एक्सपेरिमेंट के दौरान एल्फ्रेड ने पाया कि नाइट्रोग्लिसरीन और नाइट्रोसेल्यूलोज को मिलाने से एक ठोस सामान बनता है । नाइट्रोसेल्यूलोज बहुत ज्यादा धधकने वाला , रोएँदार compound है । नतीजा यह था कि इससे बनने वाला प्लास्टिक मटेरियल बाकि डायनामाइट की तुलना में ज्यादा वाटर रेजिस्टेंस और बहुत मज़बूत थे . इसे दुनिया भर में खुदाई के लिए अपनाया गया था , जिससे एल्फ्रेड को काफी पैसा मिला , लेकिन इससे उनके सेहत पर भी बुरा असर पड़ा । 1887 में , बैलिस्टाइट का इन्वेंशन किया गया था । यह एक नाइट्रोग्लिसरीन पाउडर था जिससे धुआँ नहीं निकलता था । इसी से कॉर्डाइट बनाया गया जो धुआं ना छोड़ने वाला एक तरह का बारूद है । हालांकि नोबेल के पास डायनामाइट और कई और explosives के इन्वेंशन के लिए पेटेंट था , लेकिन उन्हें लगातार उन competitors से परेशान होना पड़ रहा था जिन्होंने इनके तरीकों को चुरा लिया था । इस बीच , Russia में एल्फ्रेड के भाइयों ने बाकू के पास तेल के खेतों की खोज की और अमीर और ख़ुशहाल बन गए । उन्होंने बॅनोनेल नाम की एक बहुत बड़ी तेल की कंपनी खोली |

कंपनी अज़रबेज़िन में चलायी गयी और दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियों में से एक बन गई । एल्फ्रेड के इन्वेंशन और उनके भाई की कंपनियों के कारण , एल्फ्रेड नोबेल एक अमीर आदमी बन गए । उन्होंने अपने भाई की तेल कंपनियों में इंवेस्ट भी किया । 1893 में उन्होंने स्वीडन के बोफोर्स में लोहे का एक कारखाना खरीदा । इसे बोफोर्स आर्स फैक्ट्री बनाने के लिए और बढ़ाया गया । नोबेल के नाम पर और भी कई इन्वेंशन थे । इनमें artificial रेशम और leather शामिल थे ।

अलग – अलग देशों में , एल्फ्रेड लगभग 350 पेटेंट पाने में सफल रहे । उन्होंने लगभग 90 कारखानों को बनाया जो हथियारों को बनाते थे . हालांकि , एल्फ्रेड नोबेल को शांतिवादी माना जाता है , जिन्हें जंग पसंद नहीं था । उन्हें उनके इन्वेंशन के लिए रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज के मेंबर के रूप में भी चुना गया था । एल्फ्रेड ने स्वीडन में Uppsala University से डॉक्टरेट का पद भी हासिल किया ।

डायनामाइट कंपनियां:-

एल्फ्रेड नोबेल द्वारा बनाई गई कंपनी , जो डायनामाइट बनाने वाली पहली कंपनी थी , एक जॉइंट स्टॉक कंपनी थी । इसे ” नोबेल डायनामाइट ट्रस्ट कंपनी ” कहा जाता था । उन्होंने स्वीडन में पहले ही नाइट्रोग्लिसरीन एक्टीबोलागेट एबी ( Nitroglycerin Aktiebolaget AB ) को बनाया था । यह भी जॉइंट स्टॉक कंपनी थी । एल्फ्रेड को कंपनी में 49.6 % शेयर मिले और कैश पेमेंट भी मिली । एल्फ्रेड की दूसरी नाइट्रोग्लिसरीन कंपनी 1865 में बनाई गई थी । उन्होंने बाद में अपने शेयर बेचे और उन्हें पेटेंट से पैसे भी मिले । एल्फ्रेड ने 1865 में स्वीडन छोड़ दिया और कभी – कभार यात्राओं के अलावा कभी नहीं लौटे । जर्मनी में , उन्होंने अधिकारियों से इजाज़त लेने के बाद क्रमल में एक कारखाना खोला |

उनकी दो स्वीडिश व्यापारियों ने मदद की , जिन्होंने उन्हें काम करने के लिए एक जगह भी दी थी । जर्मन कंपनी में उनके पास 57 परसेंट शेयर थे । एल्फ्रेड 1866 में अमेरिका गए । वे ख़ास तौर पर अपने पेटेंट को बचाने के लिए गए थे । लेकिन बाद में उन्हें वहां एक और नाइट्रोग्लिसरीन कंपनी खोली । उन्हें 10,000 डॉलर cash और 25 परसेंट पेटेंट ट्रांसफर करने के लिए मिले । एक कारखाना भी बनाया गया था , जो तीन साल बाद एक्सप्लोसिव्स के कारण बर्बाद हो गया था । कंपनी ने आखिर में प्रोडक्शन बंद कर दिया । 1868 में , नोबेल इंग्लैंड गए और कई जगह घूमे |

उन्होंने अलग – अलग जगहों पर अपने बनाई हुई चीज़ों को दिखाया । उन्होंने मीडिया को अपने चीज़ों को commercialize करने के लिए बुलाया । बातचीत तीन साल तक चली , और ब्रिटिश डायनामाइट कंपनी लिमिटेड की स्थापना 1871 में हुई । एल्फ्रेड के पास कंपनी के आधे शेयर थे । 1869 में , नोबेल फ्रांस में पॉल बार्ब नामक एक शख्स से मिले । उसके बाद पॉलिल्स में एक और कारखाना बनाया गया ।

अपने बाद के सालों में , एल्फ्रेड ने स्वीडन में कंपनी बोफोर्स ख़रीद ली । सौदे के एक हिस्से में एक हवेली भी शामिल थी जिसका इस्तेमाल वह सिर्फ गर्मियों के दौरान करते थे । उनकी सभी कंपनियों से प्रॉफिट हो रहे थे । प्रोडक्शन और एक्सपोर्ट के मामले में जर्मन कंपनियां सबसे अच्छी साबित हुईं । स्विस और italian कंपनियों को कोई भी फायदा नहीं हुआ । फ्रांसीसी कंपनी को फायदा कमाने में समय लगा । स्पेनिश कंपनी शुरू से ही सफल रही थी । ब्रिटिश कंपनी तो एक छोटी सी कंपनी थी । उनकी कई कंपनियों को डायनामाइट बनाने वाले कई कंपनियों से कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा । इस तरह , एल्फ्रेड नोबेल कभी भी मार्केट में डायनामाइट पर मोनोपोली यानी इकलौता अधिकार हासिल नहीं कर सके ।

नोबेल प्राइज

1888 में कान्स का दौरा करते समय , एल्फ्रेड के भाई लुडविग की मौत हो गयी । एक फ्रांसीसी अखबार ने गलती से एल्फ्रेड के लिए एक शोक सन्देश छाप दिया । शोक सन्देश ने उनके इन्वेंशंस के लिए उनकी बुराई की और कहा , ” मौत का सौदागर मर चुका है । ” यह भी लिखा था कि जो इंसान तेजी से लोगों को मारने के तरीके खोजकर अमीर बना , उसकी मौत हो गई । इससे एल्फ्रेड परेशान हो गए क्योंकि वह इस बारे में चिंतित थे कि उनकी मौत के बाद उन्हें कैसे याद किया जाएगा ।

ऐसा माना जाता है कि यही कारण है कि एल्फ्रेड ने नोबेल prize की शुरुआत की । वह इस घटना से बहुत आहत हुए थे । वह चाहते थे कि लोग उन्हें जनता की सेवा करने वाले के रूप में याद करें । 1895 में , एल्फ्रेड ने अपनी अंतिम वसीयत पर सिग्नेचर किए और नोबेल प्राइज की शुरुआत करने के लिए अपनी प्रॉपर्टी का एक बड़ा हिस्सा अलग रखा , जो लोगों को हर साल दिया जाना था । प्राइज फिजिकल साइंस , केमिस्ट्री , फिजियोलॉजी और विश्व शांति के लिए कुछ इंटरनेशनल सेवा के लिए दिए जाने थे । prize के लिए नाम लिखने का काम नोबेल कमिटी द्वारा लगभग 3000 लोगों के लिए किया जाता है । एक रिपोर्ट तैयार की जाती है जो बताती हैं कि लोग किस फील्ड में सबसे अच्छे हैं और मैक्सिमम वोट का फैसला विनर का नाम तय करता है ।

प्राइज पाने वालो को एक gold medal और 10 मिलियन स्वीडिश क्रोना दिया जाता था । एल्फ्रेड ने अपनी वसीयत में लिखा था कि पैसा discovery और इन्वेंशन के लिए जाना चाहिए लेकिन science और टेक्नोलॉजी के बीच ठीक से फ़र्क नहीं बताया । इस कारण से , पैसा इंजीनियरों की तुलना में साइंटिस्ट्स के पास ज्यादा गया । स्वीडन के सेंट्रल बैंक ने छठे प्राइज की शुरुआत करने के लिए अपनी 300 एनिवर्सरी पर एक बड़ा अमाउंट डोनेट किया । यह प्राइज इकोनॉमिक्स एरिया में एक्सीलेंस के लिए दिया जाना था ।

नोबेल प्राइज के खिलाफ बहुत बुराइयाँ भी हुई हैं । committee पर अक्सर किसी एक की साइड लेने का और पॉलिटिकल एजेंडा चलाने का आरोप लगाया जाता रहा है । नोबेल प्राइज के खिलाफ एक बड़ी आलोचना यह है कि महात्मा गांधी को विश्व शांति में उनके योगदान के लिए नोबेल प्राइज नहीं मिला । जिस साल गांधी जी की मौत हुई , उस साल कोई भी नोबेल शांति प्राइज नहीं दिया गया था । committee ने कहा कि इसके लायक कोई उन्हें मिला ही नहीं । यह उन बड़े कारणों में से एक है जिसकी वजह से नोबेल प्राइज की बहुत आलोचना होती रही है ।

Personal life

एल्फ्रेड नोबेल जीवन भर अकेले रहे और डिप्रेशन से जूझते रहे | हालाँकि उनके बिज़नेस के लिए उन्हें यात्रा करने और लोगों से मिलने की जरुरत थी , पर वह अकेले ही रहा करते थे । उन्होंने कभी शादी नहीं की । हालांकि लोगों ने दावा किया कि उनके कम से कम तीन अफेयर थे । उनका पहला अफेयर एलेक्जेंड्रा नाम की एक Russian लड़की के साथ था , जिसने उनके proposal को मना कर दिया था । 1876 में , उनका अपनी सेक्रेटरी , बर्था किन्स्की के साथ संबंध था ।

एल्फ्रेड ने एक न्यूज़पेपर में सेक्रेटरी की जॉब के लिए एक समझदार महिला के लिए एक ad दिया था । ऑस्ट्रिया की एक औरत इस पद के लिए सबसे काबिल थी । बर्था ने एल्फ्रेड को छोड़ दिया और अपने पुराने प्रेमी से शादी कर ली | हालांकि दोनों एल्फ्रेड की मौत तक एक दूसरे से बातचीत करते रहते थे । उनका सबसे लंबा रिश्ता सोफीजा हेस के साथ 18 साल तक रहा । एल्फ्रेड नोबेल की पर्सनालिटी अक्सर उनके फील्ड में काम करने वाले लोगों को हैरान करती थी । उन्होंने अपने इतने अच्छे भाग्य के बावजूद हमेशा एक सादा जीवन बिताया | इंजीनियरिंग और एक्सप्लोसिव्स ( explosives ) में उनकी दिलचस्पी के अलावा , एल्फ्रेड को literature में दिलचस्पी थी और वे अक्सर play , novel और poem लिखते थे । उनके पास किताबों का बहुत बड़ा कलेक्शन था , और वे उन्हें बहुत ध्यान से पढ़ते थे । एल्फ्रेड के पास 1500 से ज्यादा किताबों की ख़ुद की library थी । इनमें फिक्शन के साथ – साथ philosophers और साइंटिस्ट्स के क्लासिक काम भी शामिल थे । उनकी ज्यादातर लिखी हुईं किताबे छापी नहीं गयीं ।

एल्फ्रेड की poem इंग्लिश में लिखी गई थीं । उन्होंने दावा किया कि उन्होंने सिर्फ अपने dipression को दूर करने और अपनी इंग्लिश में सुधार करने के लिए poem लिखी थी । उन्होंने अपनी ज्यादातर poem को ख़ुद ही ख़त्म भी कर दिया था । उनकी energy किसी से कम्पेयर नहीं की जा सकती थी । वह एक वर्कहॉलिक था जिन्हें आराम करना मुश्किल लगता था । उनकी रपॉलिटिकल सोच भी काफी दिलचस्प थी । वे एक सोशलिस्ट थे और उन्हें डेमोक्रेसी पर भरोसा नहीं था ।

वह Women’s Empowerment में विश्वास करते थे और शांति पसंद करने वालों में से थे थे । उन्हें उम्मीद थी कि उनके इन्वेंशन जंग को पूरी तरह ख़त्म कर देंगे । नोबेल मार्टिन लूथर को मानने वाले थे और नियमित रूप से चर्च जाते थे । हालांकि बाद में अपने जीवन में , वे नास्तिक बन गए । एल्फ्रेड नोबेल का जीवनभर सेहत खराब रहा । उन्हें कई बीमारियाँ थीं जैसे ठीक से खाना न पचना , सिरदर्द और depression । वो कई हेल्थ रिसोर्ट भी गए लेकिन उन्हें उनके इलाज का तरीका पसंद नहीं आया । काम ना करने से वे बोर हो गए | chemicals के साथ काम करने और अपने तनाव भरे जीवन के कारण वह हमेशा बीमार रहते थे ।

मौत

एल्फ्रेड नोबेल ने अपने इन्वेंशन बैलिस्टाइट को इटली को बेच दिया था । इस कारण से , एल्फ्रेड पेरिस चले गए क्योंकि उन पर विश्वासघात का आरोप लगाया गया था । एल्फ्रेड को हमेशा पेरिस पसंद था । वहाँ उन्होंने एक खूबसूरत हवेली खरीदी और 20 साल तक वहीं बसे रहे । उनके घर को ” माई नेस्ट ” कहा जाता था । बाद में वह सैन रेमो के एक विला में शिफ्ट हो गए । कहते हैं कि एल्फ्रेड स्वीडन के राजा ऑस्कर को उनकी यात्राओं के दौरान अपने विला में रहने के लिए देना चाहते थे । 1895 तक एल्फ्रेड नोबेल , एनजाइना पेक्टोरिस से प्रभावित हो चुके थे | दिल की ओर खून के बहने में कमी के कारण उन्हें सीने में दर्द शुरू हो गया था |

90 के दशक की शुरुआत में , उनका depression भी गहरा होने लगा । अपने आखिरी सालों के दौरान , एल्फ्रेड ने कई play और novel लिखे । उन्होंने ” The Patent Bacillus ” नाम का एक play लिखा । उन्होंने एक novel पर भी काम किया । 1986 में , एल्फ्रेड की इटली के सैन रेमो में एक स्ट्रोक के कारण मौत हो गई । उन्हें लकवा मार गया था और दोपहर 2:00 बजे उनकी मौत हो गई । उनका अंतिम संस्कार बहुत साधारम तरीके से किया गया । स्वीडन के स्टॉकहोम में बड़े तरीके से उनका अंतिम संस्कार किया गया । एल्फ्रेड को स्टॉकहोल्म में Norra Begravaningsplatsen में दफनाया गया है । एल्फ्रेड का विला बेच दिया गया , और उसे cultural और साइंटिफिक कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता है । बाद में उस विला और बगल में लेबोरेटरी को जनता के लिए एक म्यूजियम में बदल दिया गया था । जब उनकी वसीयत खोली गई तो वो बड़ा चौंकाने वाला था , ऐसा इसलिए था क्योंकि उन्होंने अपना पैसा नोबेल प्राइज की शुरुआत करने के लिए छोड़ दिया था ।

एल्फ्रेड ने लगभग 250 मिलिय अमेरिकी डॉल छोड़े थे जो बाद में नोबेल प्राइज के लिए इस्तेमाल किए गए । उनकी वसीयत एक तिजोरी में रखी गई है और इसे कभी भी जनता को दिखाया नहीं गया है । एक क्लब में चार अजनबी लोग इस डॉक्यूमेंट के गवाह थे । दो जवान इंजीनियरों , रगनार सोहलमैन और salms fruitcake ( Ragnar Sohlman and Rudolf Lilljequist ) , ने उनकी वसीयत को 1 अंजाम दिया । रगनार सोहलमान उनके असिस्टेंट थे ।

उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि कई देशों में अधिकारियों और उनके रिश्तेदारों ने वसीयत पर सवाल उठाए थे । उनके भतीजे और भतीजी उनकी प्रॉपर्टी के वारिस बनना चाहते थे । बहुत सारे स्वीडिश लोग भी नाराज थे क्योंकि नोबेल प्राइज को सभी देशों के लिए रखा गया था । उनकी मौत के पांच साल बाद , पहला नोबेल प्राइज दिया गया था । नोबेल म्यूजियम नाम का एक म्यूजियम 2001 में स्वीडन में बनाया गया था । उस म्यूजियम में अलग – अलग exhibition लगाएं जाते हैं ।

Conclusion:-

इस समरी ने आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताया जिन्होंने डायनामाइट इन्वेंट किया था ! आपने एल्फ्रेड नोबेल के निजी जीवन और इंजीनियरिंग में उनकी दिलचस्पी के बारे में पढ़ा । आपको उनके इन्वेंशंस और उनके सभी पेटेंट के बारे में भी पता चला । इस समरी में अलग – अलग फील्ड में excellence के लिए दिए जाने वाले सबसे बड़े प्राइज , नोबेल प्राइज की शुरुआत के बारे में भी बताया गया है ! आपने पढ़ा कि नोबेल प्राइज की शुरुआत कैसे हुई और एल्फ्रेड नोबेल ने इंटरनेशनल सोसाइटी में कैसे अपना योगदान दिया । इस समरी ने आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताया जिनके नाम 350 से ज्यादा पेटेंट हैं !

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